देश के युवाओं के लिए आदर्श हैं RSS के दिग्गज नेता इंद्रेश कुमार, जानें उनके बारे में सबकुछ



देश देश की सियासत में काफी पहले से ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का अपना अलग रोल रहा है। आरएसएस से निकलने वाले तमाम नेता अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। आरएसएस को बीजेपी का पितृ संगठन माना जाता है।  मौजूदा समय में देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेताओं की कुंडली खंगाले तो यह पाएंगे कि बीजेपी के तमाम नेता पहले आरएसएस के स्वंयसेवक रह चुके हैं या फिर आरएसएस के लिए काम कर चुके हैं।  इसी बीच आज हम आपको आरएसएस से ही जुड़े एक बड़े नेता के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने 10 साल की उम्र से ही शाखा में जाना शुरु कर दिया था, जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अपने बैच का गोल्ड मेडलिस्ट था लेकिन देश सेवा के लिए उन्होंने सबकुछ त्याग दिया और साल 1970 में संघ के प्रचारक बन गए।   हरियाणा के कैथल के रहने वाले हैं इंद्रेश कुमार जी हां, हम बात कर रहे हैं आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के बारे में... उनके पिता उस जमाने में जनसंघ से विधायक थे और परिवार हरियाणा के कैथल शहर के सबसे धनाढ्य परिवारों में एक। उसी परिवार से 10 साल की छोटी उम्र का एक बच्चा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाना शुरू करता है, संघ शाखा में जाने के साथ-साथ पढाई में भी अव्वल ये बालक इंजिनीयरिंग करने गया तो वहां भी अपनी योग्यता के झंडे गाड़ दिए और जब वहां से निकला तो मैकेनिकल इंजिनियरिंग में अपने बैच का गोल्ड मेडलिस्ट था। डिग्री मिलने के बाद अब मैकेनिकल इंजिनियरिंग के इस टॉपर के सामने दो रास्ते थे, परिवार का जमा-जमाया व्यवसाय संभाले या फिर कहीं अच्छी सी नौकरी करे और उसके बाद गृहस्थी बसाये पर उसने ये रास्ता नहीं चुना। उसने खुद को देश और धर्म की सेवा में झोंक दिया और 1970 में संघ के प्रचारक बन गये। बताया जाता है कि तब उनके पिता ने खुशी में पूरे मोहल्ले में भोज दिया कि उनके बेटे ने खुद के लिये जीने की बजाए देश के लिये जीने की राह चुनी है। जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में संघ के प्रसार के लिए किया काम संघ का प्रचारक बनने के बाद उन्हें दिल्ली में काम करने का दायित्व सौंपा गया, तो 1970 से 1983 तक अलग-अलग दायित्वों में दिल्ली में काम करते रहे। अपने इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्हें आपातकाल के दंश से लेकर, सिख विरोधी अभियान तक के विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिन्दू समाज का कुशल मार्गदर्शन किया, इसी दौरान दिल्ली में माँ झंडेवाली मंदिर की जमीन को भी असामाजिक तत्वों के कब्जे से मुक्त कराया।

देश के युवाओं के लिए आदर्श हैं RSS के दिग्गज नेता इंद्रेश कुमार, जानें उनके बारे में सबकुछ? By Awanish Tiwari | Posted on 29th Jun 2021 | देश देश की सियासत में काफी पहले से ही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का अपना अलग रोल रहा है। आरएसएस से निकलने वाले तमाम नेता अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। आरएसएस को बीजेपी का पितृ संगठन माना जाता है।  मौजूदा समय में देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेताओं की कुंडली खंगाले तो यह पाएंगे कि बीजेपी के तमाम नेता पहले आरएसएस के स्वंयसेवक रह चुके हैं या फिर आरएसएस के लिए काम कर चुके हैं।  इसी बीच आज हम आपको आरएसएस से ही जुड़े एक बड़े नेता के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने 10 साल की उम्र से ही शाखा में जाना शुरु कर दिया था, जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अपने बैच का गोल्ड मेडलिस्ट था लेकिन देश सेवा के लिए उन्होंने सबकुछ त्याग दिया और साल 1970 में संघ के प्रचारक बन गए।   हरियाणा के कैथल के रहने वाले हैं इंद्रेश कुमार जी हां, हम बात कर रहे हैं आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार के बारे में... उनके पिता उस जमाने में जनसंघ से विधायक थे और परिवार हरियाणा के कैथल शहर के सबसे धनाढ्य परिवारों में एक। उसी परिवार से 10 साल की छोटी उम्र का एक बच्चा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में जाना शुरू करता है, संघ शाखा में जाने के साथ-साथ पढाई में भी अव्वल ये बालक इंजिनीयरिंग करने गया तो वहां भी अपनी योग्यता के झंडे गाड़ दिए और जब वहां से निकला तो मैकेनिकल इंजिनियरिंग में अपने बैच का गोल्ड मेडलिस्ट था। डिग्री मिलने के बाद अब मैकेनिकल इंजिनियरिंग के इस टॉपर के सामने दो रास्ते थे, परिवार का जमा-जमाया व्यवसाय संभाले या फिर कहीं अच्छी सी नौकरी करे और उसके बाद गृहस्थी बसाये पर उसने ये रास्ता नहीं चुना। उसने खुद को देश और धर्म की सेवा में झोंक दिया और 1970 में संघ के प्रचारक बन गये। बताया जाता है कि तब उनके पिता ने खुशी में पूरे मोहल्ले में भोज दिया कि उनके बेटे ने खुद के लिये जीने की बजाए देश के लिये जीने की राह चुनी है। जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में संघ के प्रसार के लिए किया काम संघ का प्रचारक बनने के बाद उन्हें दिल्ली में काम करने का दायित्व सौंपा गया, तो 1970 से 1983 तक अलग-अलग दायित्वों में दिल्ली में काम करते रहे। अपने इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्हें आपातकाल के दंश से लेकर, सिख विरोधी अभियान तक के विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने इन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिन्दू समाज का कुशल मार्गदर्शन किया, इसी दौरान दिल्ली में माँ झंडेवाली मंदिर की जमीन को भी असामाजिक तत्वों के कब्जे से मुक्त कराया।                 इंद्रेश कुमार की असाधारण योग्यता को देखते हुए संघ ने इन्हें बिलकुल प्रतिकूल जगह भेजने का निर्णय लिया और उन्हें संघ कार्य को विस्तार देने के लिये कश्मीर और हिमाचल प्रदेश भेज दिया गया। 90 की शुरूआती दशक में जब पूरा कश्मीर हिन्दू विरोधी और राष्ट्र विरोधी आग में जल रहा था तब ये शख्स वहां के संतप्त हिन्दू समाज के बीच अविचलित हुए बिना काम कर रहा था। जिस समय देश के नेता और अधिकारी कश्मीर के हिन्दुओं को उनके हाल पर छोड़कर किसी चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे थे उस समय ये वहां के गाँव-गाँव में बिना किसी सुरक्षा के घूम रहे थे। बताया जाता है कि कई बार आतंकियों ने उनके अपहरण और हत्या की कोशिश की, धमकियाँ भेजी पर ये डिगे नहीं। 17 साल वहां काम करने के बाद संघ ने इनको अखिल भारतीय अधिकारी का दायित्व सौंपा, फिर तो इनके चमत्कारिक व्यक्तित्व के कई और आयाम देश के सामने आने लगे। 40 से अधिक संगठनों की स्थापना खबरों के मुताबिक इंद्रेश कुमार ने 40 से भी अधिक संगठनों की स्थापना की है। मौजूदा समय में समाज, राष्ट्र और हिंदू धर्म से जुड़े हर काम में इनका कहीं न कहीं योगदान है। अगर हम पर्यटन की बात करेंगें तो इन्होंनें पवित्र सिन्धु नदी से जुड़ी ‘सिन्धु दर्शन यात्रा’ शुरू की। फिर पूर्वोत्तर की ओर पहुंचे और तवांग यात्रा का आयोजन किया। आज भी हर वर्ष ये दोनों यात्रायें होतीं हैं। ये देश के पहले इंसान है जिन्होनें धार्मिक यात्रा के साथ-साथ देश-प्रेम यात्रा का आयोजन शुरू किया। उन्होंने अपने एक संगठन "फिन्स" (फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्यूरिटी) के बैनर तले ‘सरहद को प्रणाम’ नाम से एक यात्रा शुरू करवाई जिसमें लाखों युवक और युवतियों ने देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा की और सरहद तक पहुँचे। हर वर्ष दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अंडमान में भी ऐसी ही यात्रा का आयोजन होता है जहाँ लोग सेलुलर जेल जाकर अपने महान बलिदानियों को नमन करतें हैं। सीमा की सुरक्षा सरकार के साथ-साथ समाज की जिम्मेदारी सीमा की सुरक्षा केवल सरकार की नहीं बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है इसलिए इन्होंने ‘सीमा जागरण मंच’ नाम से एक संगठन बनाया है जो भारत के सीमवर्ती इलाकों भी सजग और मुस्तैद है। देश की आंतरिक सुरक्षा पर कोई आंच न आये और सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ समाज भी सजग रहे  इसके लिये फिर ‘फैन्स’ (फोरम फॉर अवेयरनेस ऑन नेशनल सिक्यूरिटी) नाम से एक संगठन बनाया जिसके कार्यक्रमों में सरकार के बड़े-बड़े मंत्री और रक्षा विशेषज्ञ आते रहतें हैं। जो सैनिक देश के लिये अपना सबकुछ न्योछावर कर देता है, सेवानिवृति के बाद भी वो बेहतर जिंदगी बीता पाए और समाज के लिये प्रेरक बन कर काम करे, इसलिए इन्होंने ‘पूर्व सैनिक परिषद्’ नाम से एक संगठन बनाया। बताया जाता है कि जब पूंछ में जेहादी आँख दिखाते हुए हिन्दुओं से कह रहे थे कि निजामे-मुस्तफा में तेरा कोई स्थान नहीं तब इन्होनें वहां ‘बूढ़ा अमरनाथ’ यात्रा की शुरुआत की और जिहादियों के मंसूबे को कुचल दिया। उसके बाद इंद्रेश कुमार ने हिमाचल प्रदेश में भी ‘बाबा बालकनाथ दियोट सिद्ध हिमालयी एकता’ नाम से ऐसी ही एक यात्रा प्रारंभ करवाई। तिब्बत चीन के आधिपत्य से मुक्त हो इसके लिये भी उनका प्रयास चला और 5 मई 1999 को उन्होंने ‘भारत तिब्बत सहयोग मंच’ नाम से एक संगठन बनाया। पूर्वोत्तर में पर्यटन के विस्तार के लिए किया काम कैलाश मानसरोवर चीन के कब्जे से मुक्त हो इसके लिये 1996 में लेह में ‘सिन्धु उत्सव’ की शुरुआत की जिसके उदघाटन कार्यक्रम में लालकृष्ण आडवानी भी गए थे। हिमालय प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित हो इसके लिये ‘हिमालय परिवार’ नाम से एक संगठन बनाया। ये संगठन वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के कामों में बड़ा सक्रिय है। माँ गंगा फिर से कल-कल करती हुई बहे इसके लिये भी उन्होंने काम किया। पूर्वोत्तर में पर्यटन का विस्तार हो और चीन की गिद्ध दृष्टि से देश अवगत हो इसके लिये पूर्वोत्तर में तवांग यात्रा के साथ-साथ परशुराम कुंड यात्रा की भी शुरुआत की। मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाने के लिए बनाया संगठन देश का मुस्लिम समाज भी राष्ट्र की मुख्यधारा में आये और विवादित मसलों पर उनके साथ संवाद हो इसके लिये 2002 में इस आरएसएस नेता ने ‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ की स्थापना की। इसी तरह ईसाई समाज से भी संवाद हो सके इसके लिये ‘राष्ट्रीय ईसाई मंच’ बनाया। गौ-रक्षा का विषय इनके दिल के सबसे करीब है, इनकी कोशिशों से लाखों-लाख मुसलमानों ने गो-हत्या रोकने के लिये हस्ताक्षर अभियान चलाया और मुस्लिम समाज से करीब 10 लाख हस्ताक्षर करवाकर राष्ट्रपति को सौंपा। नेपाल चीन के आगोश में न चला जाये इसके लिये 2006 में ‘नेपाली संस्कृति परिषद्’ नाम से एक संगठन बनाया। फिर बांग्लादेश में हो रहे हिन्दू दमन के खिलाफ वहां के बुद्धिजीवी आगे आयें इसके लिये उन्होंने ‘भारत बांग्लादेश मैत्री परिषद्’ नाम से एक संगठन बनाया। जिसके बाद साल 2006 में बौद्ध और अनुसूचित नवबौद्ध समाज से संवाद के लिये उन्होंने ‘धर्म-संस्कृति संगम’ नाम से एक संगठन बनाया। बता दें, मौजूदा समय में इंद्रश कुमार संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य और संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं। वह आये दिन देश के तमाम हिस्सों में जाते हैं, हजारों लोगों से मिलते हैं। यह देश की युवा पीढ़ी के लिए किसी आदर्श से कम नहीं है।. 

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